Wednesday, January 12, 2011

पहचान......

जितने मुसाफ़िर
उतने सफ़र ...
जितने रास्ते
उतनी मुश्किलें ...
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!

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