By: Devasya Rahul
देखो ये ठिठुरती राहें
अनजान सी ,सूनी सी
न जाने कहाँ चली जाती हैं
सर्द हवाओं से
मदमाती हुई
शायद तेरी ओर चली जाती हैं
खामोश ज़मीन को
पिघला हुआ आकाश जगाता है
एक 'प्रश्नवाचक' भी लगता है
और
सूनी राह का मन
न जाने कैसी तन्हाई से भर जाता है
ये भीगी फज़ाएँ तो सब सहने की आदी हैं
तन्हा दिल के कोने से एक धुआं सा उठता है
रस्ते पे सोया
कोई एक नाम
भीग के बोझिल आखों से
नंगे पांव
उतरता है
मेरी बातों को सुन के कहता है
सुनो.....थोड़ी सी जगह दे दो
तो ये राह कट जाएगी मेरी...!!
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